कुछ भी तो नया नहीं है. बस शाहरुख़ खान साब
वापस लौट आये हैं. ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ वाले उबाऊ शाहरुख़
नहीं, ‘बाज़ीगर’ और ‘डर’ वाले प्रयोगधर्मी शाहरुख़! एक लंबे अरसे से जहां उनकी सारी
मेहनत-मशक्कत अपने स्टारडम की चकाचौंध से अपनी और कुछ अपने ही लोगों की औसत दर्जे की
फिल्मों को बॉक्स-ऑफिस पर सफल साबित करने में जाया जा रही थी, इस बार काफी हद तक अपने
दोनों किरदारों को परदे पर जिंदा रखने और जिंदा दिखाने की कोशिशों में ज्यादा कामयाब
होती नज़र आती है. मनीष शर्मा की ‘फ़ैन’ शाहरुख़ के उस बेजोड़ ललक, लगन और अभिनय के
प्रति लगाव को हवा देती है, बॉलीवुड की बादशाहत हासिल करने में जिसने एक बड़ी
भूमिका निभाई है. शाहरुख़ बेझिझक इस मौके का पूरा फायदा उठाते हैं. पर अफ़सोस, एक फिल्म
के तौर पर ‘फ़ैन’ अपनी छाप छोड़ने में उतनी शिद्दत नहीं दिखा पाती.
दिल्ली की तंग गलियों में एक छोटे से मोहल्ले
का हीरो है, गौरव! फिल्मस्टार आर्यन खन्ना का हमशकल और फ़ैन. लोग उसे ‘जूनियर आर्यन
खन्ना’ बुलाते हैं और वो आर्यन खन्ना को ‘सीनियर’! मासूमियत का आलम ये है कि उसे
लगता है मुंबई पहुँचने पर आर्यन उसे पलकों पर बिठा लेगा, पर अपना फिल्मस्टार तो
उसे अपनी जिंदगी के 5 मिनट देने से भी मुंह मोड़ लेता है. एक-दो बेवजह के रोमांचक एक्शन
दृश्यों को छोड़ दें तो यहाँ तक की फिल्म आपको पूरी तरह अपने गिरफ्त में जकड़े रखती
है, पर इसके तुरंत बाद जब वाहियात और उल-जलूल की नाटकीयता का दौर शुरू होता है तो
आपके पास भी एक वक़्त बाद फिल्म के ख़तम होने का इंतज़ार करने के अलावा बहुत कुछ करने
को नहीं रह जाता.
‘फ़ैन’ को आप बड़ी आसानी से ‘प्री-इंटरवल’
और ‘पोस्ट-इंटरवल’ में बांट कर देख सकते हैं. दोनों एक-दूसरे से उतने ही अलग-थलग
दिखाई देते हैं जितना आर्यन और उसका डुप्लीकेट गौरव. फिल्म के पहले हिस्से में
हबीब फैसल साब की राइटिंग आपको दिल्ली के मिडिल-क्लास तबके के आस-पास ही भटकने की
इजाज़त देती है. और इसीलिए इस हिस्से से आपका जुड़ाव जबरदस्ती का नहीं लगता. गौरव साइबर
कैफे चलाता है, ठीक उसी तरह के सेटअप में जैसे ‘दम लगाके हईशा’ में आयुष्मान कैसेट
की दूकान. हैरत तब होती है जब फिल्मस्टार को उसकी जगह दिखाने और उसके अहम को सबक
सिखाने की पूरी भाग-दौड़ में दिल्ली का मिडिल-क्लास नौजवान विदेशों में एक मंजे हुए
कॉन-आर्टिस्ट की तरह अपनी सनक भरी हरकतें अंजाम देने लगता है. आपका लगाव अब जमीनी किरदारों
से हटकर भारी-भरकम एक्शन दृश्यों की सफाई पर टिक गया है. जबरदस्त शुरुआत के बाद, ‘फ़ैन’
अब अंततः एक औसत फिल्म बने रहने की ओर तेज़ी से लुढ़कने लगी है.
फिल्म के कमज़ोर पक्षों में शामिल हैं, फिल्म
की लम्बाई, बेवजह का ड्रामा, ठूंसा हुआ एक्शन और लचर स्क्रीनप्ले, खास तौर पर इंटरवल
के बाद! इसके बावजूद, ‘फ़ैन’ देखने का अगर आप कोई भी बहाना ढूंढ रहे हों तो वो शाहरुख़
का अभिनय ही हो सकता है. हालाँकि हॉलीवुड एक्सपर्ट्स का मेक-अप दोनों किरदारों को
बखूबी एक-दूसरे से अलग नज़र आने में मदद करता है, पर शाहरुख़ जिस संजीदगी से दोनों
किरदारों को परदे पर जीते हैं, आप हैरान हुए बिना नहीं रह पाते. सुपरस्टार आर्यन का
जिद्दी अक्खडपन, गौरव का डराने वाला पागलपन और इनके बीच लगातार रंग बदलते शाहरुख़, इसी
की कमी तो अब तक खल रही थी, शाहरुख़ के चाहने वालों को भी और उनके आलोचकों को भी!
[3/5]
Bhai tum hindi me mat likho yaar, agar likhna hi hai to side me optional English me review b chipka do
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