Friday 28 October 2016

शिवाय: एक्शन आहा, इमोशन स्वाहा! [1.5/5]

शिवाय’ में अजय देवगन एक ऐसे पिता बने हैं, जो अपनी बेटी के लिए कुछ भी कर सकता है. पहाड़ों से छलांग लगा सकता है. बुल्गारिया की पुलिस फ़ोर्स और रशियन माफिया से अकेले लड़ सकता है. मौत को भी पीछे छोड़ सकता है. इस पिता के प्यार पर अनुष्का (सायेशा सहगल, सुमीत सहगल की बेटी) इतनी फ़िदा है कि अजय के किरदार में अपने पिता को देखने लगती है, हालाँकि वो शिवाय में अपने पति को तलाश रही है. फिल्म के सबसे आख़िरी और जरूरी पलों में अनुष्का शिवाय के सामने है, “जिन लड़कियों को अच्छे पिता मिलते हैं. उनके लिए अच्छे लड़कों की तलाश लम्बी हो जाती है. ऐसा नहीं है कि लड़के मिलते नहीं, पर उन्हें तलाश किसी और की होती है.” इस पूरे वाहियात वाकिये का फिल्म के किसी इमोशन से कुछ लेना देना नहीं है, शायद इसीलिए अनुष्का आखिर में बात साफ़ भी कर देती है, “मुझे खुद नहीं पता, मैं क्या कह रही हूँ?” फिल्म का सबसे ईमानदार पल है ये. वाकई में किसी को कुछ भी पता नहीं, क्या हो रहा है? क्यूँ हो रहा है? जो हो रहा है, बस हो रहा है.

हाथ में चिलम पकड़े शिवाय (अजय देवगन) नंगे बदन बर्फ पर लेटा है. सैलानियों को बर्फीली चोटियों की सैर कराना काम है उसका. रोब-रुआब ऐसा, जैसे पूरा हिमालय उसी का है. खुद को भगवान् शिव से कम नहीं समझता. एक सैलानी जब पूछती है, “सिर्फ नाम ही है, या शिव जैसा और भी कुछ है?”, वो एक के बाद एक अपने बदन के सारे टैटू दिखाने लगता है. सैलानी बुल्गारिया की है. दोनों में प्यार होने की खानापूर्ति बर्फ़ खिसकने की एक दुर्घटना के बाद होती है. वोल्गा (एरिका कार) प्रेग्नेंट है, पर उसे बच्चा नहीं चाहिए. उसे बुल्गारिया लौटना है. शिवाय उसे जिस अंदाज़ में डिलीवरी तक रुकने और बच्चा दे कर जाने को कहता है, वो बहुत खौफनाक लगता है. वोल्गा जा चुकी है. गौरा (अबीगेल ईम्स) अपने पिता शिवाय के पास ही रहती है. घटनाएं तब करवट लेती हैं, जब गौरा को माँ के बारे में पता चलता है और वो बुल्गारिया जाने की जिद कर बैठती है.

गौरा बोल नहीं सकती, मुझे नहीं पता उसका बोल न पाना उसके किरदार को किस तरह प्रभावित करता है? ‘बजरंगी भाईजान’ में मुन्नी बोल नहीं सकती, इसलिए अपने बारे में ज्यादा कुछ बता नहीं सकती. यहाँ कहानी में इस तरह की कोई बंदिश नहीं है. वजह सिर्फ दो ही हो सकती हैं, एक तो क्यूंकि अबीगेल विदेशी हैं, उनकी हिंदी शायद इतनी अच्छी न हो, पर ऐसा होता तो कटरीना कैफ हर फिल्म में गूंगी ही होतीं. बची दूसरी वजह, दर्शकों को इमोशनली जोड़े रखने के लिये. 2 घंटे 52 मिनट में आखिर हर हथकंडा तो अपनाना ही है.

फिल्म में एक्शन देखने लायक है. बर्फीली चोटियों पर ट्रैकिंग के शॉट्स, बर्फ खिसकने का रोमांच और लम्बे-लम्बे ‘चेजिंग सीक्वेंस’! जिस जिस को भी हिंदी फिल्मों के एक्शन में ‘गुरुत्वाकर्षण’ के नियम की अनदेखी दिखती है, उनका इस फिल्म में पूरा ख्याल रखा गया है. यहाँ अजय गुंडों को मार कर हवा में तैराते नज़र नहीं आते, बल्कि यहाँ सब कुछ नीचे की ओर ही गिरता दिखाई देता है, किरदारों से लेकर कहानी में लॉजिक के इस्तेमाल तक. पहाड़ियों से छलांग लगाने में शिवाय को कोई झिझक या झंझट महसूस नहीं होती. वो कूदता है, गिरता चला जाता है, बीच-बीच में कलाबाजियां भी खा लेता है और नीचे पहुँचते पहुँचते खुद को संभाल भी लेता है. एक दृश्य में तो हेलीकाप्टर से गोलियों की बारिश हो रही है और शिवाय अपनी बेटी के साथ खुली सड़क पर आराम से भागा जा रहा है. चिलम की जरूरत अब हमें है.

अजय देवगन गंभीर अभिनेता माने जाते हैं. अपनी आँखों से ही वो काफी कुछ कर और कह जाते हैं. इस बार भी उनकी आँखें पूरी स्क्रीन पर कई बार ‘टाइट क्लोज-अप’ में खुलती-बंद होती हैं. एक बार तो उनकी आँखों का इस्तेमाल ‘INTERMISSION’ में ‘I’ की जगह पे भी हो जाता है, पर काश इतने से ही काम चल जाता! हाँ, एक्शन में वो पूरी जान लड़ा देते हैं. एरिका और सायेशा दोनों अपने-अपने तरीके से आपको कुढ़ने-चिढ़ने पर मजबूर करती रहती हैं. मुझे पता है, बच्चों को हमेशा ‘क्यूट और स्वीट’ कहना चाहिए, चाहे वो कितने भी बद्तमीज़ और आक्रामक क्यूँ न हो. अबीगेल परदे पर ‘‘क्यूट और स्वीट’ ही लगती हैं. उनका बोल न पाना उनके लगातार चिल्लाने का बहाना बन जाता है. सायेशा अपने पिता के नक्शेकदम पर ही हैं. सिर्फ डायलाग बोल देना, दो लाइनों के बीच एक ‘पॉज’ दे देना और काम ख़तम!

अंत में, ‘शिवाय’ आपके पैसे की बर्बादी नहीं है. आपका तो कुछ भी नहीं गया. बड़ा सोचिये, पॉजिटिव सोचिये. 120 करोड़ के साथ खिलवाड़ होते देखना भी अपने आप में कोई कम मजेदार खेल नहीं है. 300 रूपये खर्च कर के 3 घंटे ‘वातानुकूलित’ मल्टीप्लेक्स में बिताना भी किसी किसी के लिये फायदे का सौदा हो सकता है. [1.5.5]              

ऐ दिल है मुश्किल: अनुष्का-रणबीर और इश्क़ की जबान उर्दू!! [3.5/5]

दोस्ती में प्यार, प्यार में दोस्ती. और इन दोनों के बीच की तमाम मुश्किलें. करन जौहर अरसे से इस समंदर में गोता लगा रहे हैं. ‘कुछ कुछ होता है के राहुल और अंजलि परदे पर भले ही बीस साल बाद अभी भी उतनी ही बचकानी ढंग से पेश रहे हों, करन परदे के पीछे काफी संजीदा हो चले हैं. अपनी नई फिल्म दिल है मुश्किल में करन एक बार फिर इकतरफा प्यार में भीगे आशिक़ की कहानी कह रहे हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार उनके किरदार कई मामलों में पहले से ज्यादा समझदार, ज्यादा ईमानदार और कुछेक मामलों में एकदम दो-टूक हैं. इतने दो-टूक कि चुभने लगें, दर्द देने लगें. रिश्तों में लाग-लपेट वाली कोई चाशनी नहीं, कोई मलाल नहीं. बस बेपरवाह मुहब्बत, और मुहब्बत में बेपरवाही.

दिल है मुश्किल बड़ी सफाई से, और बहुत ही दिलचस्प तरीके से बॉलीवुड में रोमांटिक फिल्मों का जश्न भी मनाती है और साथ ही साथ, उन्हीं पर तंज कसते हुए हंसना भी जानती है. लन्दन में अलीज़ेह (अनुष्का शर्मा) अयान (रणबीर कपूर) से मिलती है. दोनों बॉलीवुड के भक्त हैं. अयान मोहम्मद रफ़ी बनना चाहता है. अलीज़ेह शिफॉन साड़ी पहन कर बर्फीली पहाड़ियों में हिंदी फिल्म की हीरोइनों जैसे नाचना चाहती है. हालिया ब्रेक-अप से गुज़र रही अलीज़ेह को अयान की आदतें, पसंद-नापसंद, ज़िन्दगी जीने का तरीका सब कुछ इतना अपना सा लगता है कि एक बार तो वो पूछ भी बैठती है, कहीं तुम मेरे बिछड़े हुए भाई तो नहीं?”. पर अयान को तो प्यार होने लगा है, अलीज़ेह से. अलीज़ेह की ज़िन्दगी में उसका अली (फ़वाद खान) वापस लौट आया है. मुहब्बत पर कभी यकीन नहीं करना चाहिए. दिल चटकने लगा है. गाने में अब दर्द की टीस सुनाई देने लगी है. 

निरंजन आयंगर के साथ मिल कर, करन जौहर प्यार, इश्क़ और मुहब्बत पर भारी-भरकम उर्दू अल्फाजों से भरे, शायराना अंदाज़ वाले खूबसूरत डायलॉग्स से फिल्म को एक नई ताजगी देते हैं. फिल्म के पहले हिस्से में, अनुष्का और रणबीर के बीच का हर सीन आपको जम के गुदगुदाता है. यहाँ अनुष्का अपने किरदार की बेबाकी और अपनी बेझिझक परफॉरमेंस से सारी तालियाँ बटोर ले जाती हैं. फिल्म में अब तक रणबीर सिर्फ अपने दिलकश अंदाज़ से ही आपको लुभाते रहे हैं. फिल्म का दूसरा हिस्सा टूटे हुए दिलों का दर्द बयान करता है. अयान को तलाकशुदा शायरा सबा (ऐश्वर्या राय बच्चन) मिल गयी हैं. दोनों एक ऐसे रिश्ते में रहना चाहते हैं, जिसका कोई नाम हो, जिसके कायदे-कानून बने ही हों कि कभी भी तोड़े जा सकें. प्यार कई पायदान ऊपर चढ़ आया है. पर पहले की टीस अभी भी कहीं दबी है.

दूसरे हिस्से में, ‘ दिल है मुश्किल थोड़ी मुश्किल में फंसती नज़र आती है, जब वो खुद हिंदी फिल्मों के उन्हीं दायरों में बंध कर कर रह जाती है, जिनकी अभी तक वो हँसी उड़ा रही थी. करन की दर्शकों को इमोशनल कर देने की चाह फिल्म पर भारी पड़ने लगी है. सब कुछ अब उतना परफेक्ट नहीं लग रहा, जितना शुरुआत में दिखा था. करन फिल्म में कई सारे पुराने बॉलीवुड गानों को अपने किरदारों को गढ़ने और फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल करते हैं. काश, वो साहिर लुधियानवी साब केवो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना बेहतरपर अमल करने की हिम्मत दिखा पाते, और फिल्म को वक़्त रहते समेट लेते. 

ऐश्वर्या का खूबसूरत लगना कोई ताज्जुब की बात या दिलचस्प वाकया नहीं है, पर दिल है मुश्किल सही मायनों में उनके हुस्न--जमाल का पूरी तरह और बखूबी इस्तेमाल करती है. रणबीर, इस हिस्से में, अपनी अदाकारी पर भरोसा दिखाने लगे हैं. ऐश्वर्या और अनुष्का के साथ डाइनिंग टेबल वाले दृश्य में, उनकी आँखें आपको अन्दर तक कोंच देती हैं. फ़वाद खान हमेशा की तरह आपकी नज़रें खुद से हटने नहीं देते. ताज्जुब की बात है कि फिल्म में एक और पाकिस्तानी कलाकार इमरान अब्बास भी मेहमान भूमिका में हैं, पर उनको लेकर किसी तरह का कोई हंगामा नहीं हुआ.

खैर, ‘ दिल है मुश्किल देखने में अपनी सूरत से कई सारी हालिया फिल्मों जैसी (तमाशा, ये जवानी है दीवानी) भले ही लगती हो, अपनी सीरत में काफी अलग है. इसे एकबॉलीवुड फिल्मसे आगे जाकर देखने की गलती अगर आप नहीं करेंगे, तो मुमकिन है आपका वक़्त अच्छा कटेगा. हिंदी फिल्मों में खूबसूरत अदाकारों के मुंह से ख़ालिस उर्दू के अलफ़ाज़ सुने अरसा बीत गया था. उम्मीद करता हूँ, उर्दू से किसी को (राजनीतिक पार्टियां, फ़र्ज़ी देशभक्त और व्हाट्स ऐप के शरारती तत्व) कोई तकलीफ़ हो! [3.5/5]