दोस्ती
में
प्यार,
प्यार
में
दोस्ती.
और इन दोनों
के बीच
की तमाम
मुश्किलें. करन जौहर अरसे से इस समंदर में गोता लगा रहे हैं. ‘कुछ कुछ होता है’ के राहुल और अंजलि परदे पर भले ही बीस साल बाद अभी भी उतनी ही बचकानी ढंग से पेश आ रहे हों, करन परदे के पीछे काफी संजीदा हो चले हैं. अपनी नई फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में करन एक बार फिर इकतरफा प्यार में भीगे आशिक़ की कहानी कह रहे हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार उनके किरदार कई मामलों में पहले से ज्यादा समझदार, ज्यादा ईमानदार और कुछेक मामलों में एकदम दो-टूक हैं. इतने दो-टूक कि चुभने लगें, दर्द देने लगें. रिश्तों में लाग-लपेट वाली कोई चाशनी नहीं, कोई मलाल नहीं. बस बेपरवाह मुहब्बत, और मुहब्बत में बेपरवाही.
‘ऐ दिल है मुश्किल’ बड़ी सफाई से, और बहुत ही दिलचस्प तरीके से बॉलीवुड में रोमांटिक फिल्मों का जश्न भी मनाती है और साथ ही साथ, उन्हीं पर तंज कसते हुए हंसना भी जानती है. लन्दन में अलीज़ेह (अनुष्का शर्मा) अयान (रणबीर कपूर) से मिलती है. दोनों बॉलीवुड के भक्त हैं. अयान मोहम्मद रफ़ी बनना चाहता है. अलीज़ेह शिफॉन साड़ी पहन कर बर्फीली पहाड़ियों में हिंदी फिल्म की हीरोइनों जैसे नाचना चाहती है. हालिया ब्रेक-अप से गुज़र रही अलीज़ेह को अयान की आदतें, पसंद-नापसंद, ज़िन्दगी जीने का तरीका सब कुछ इतना अपना सा लगता है कि एक बार तो वो पूछ भी बैठती है, “कहीं तुम मेरे बिछड़े हुए भाई तो नहीं?”. पर अयान को तो प्यार होने लगा है, अलीज़ेह से. अलीज़ेह की ज़िन्दगी में उसका अली (फ़वाद खान) वापस लौट आया है. मुहब्बत पर कभी यकीन नहीं करना चाहिए. दिल चटकने लगा है. गाने में अब दर्द की टीस सुनाई देने लगी है.
निरंजन आयंगर के साथ मिल कर, करन जौहर प्यार, इश्क़ और मुहब्बत पर भारी-भरकम उर्दू अल्फाजों से भरे, शायराना अंदाज़ वाले खूबसूरत डायलॉग्स से फिल्म को एक नई ताजगी देते हैं. फिल्म के पहले हिस्से में, अनुष्का और रणबीर के बीच का हर सीन आपको जम के गुदगुदाता है. यहाँ अनुष्का अपने किरदार की बेबाकी और अपनी बेझिझक परफॉरमेंस से सारी तालियाँ बटोर ले जाती हैं. फिल्म में अब तक रणबीर सिर्फ अपने दिलकश अंदाज़ से ही आपको लुभाते रहे हैं. फिल्म का दूसरा हिस्सा टूटे हुए दिलों का दर्द बयान करता है. अयान को तलाकशुदा शायरा सबा (ऐश्वर्या राय बच्चन) मिल गयी हैं. दोनों एक ऐसे रिश्ते में रहना चाहते हैं, जिसका कोई नाम न हो, जिसके कायदे-कानून बने ही हों कि कभी भी तोड़े जा सकें. प्यार कई पायदान ऊपर चढ़ आया है. पर पहले की टीस अभी भी कहीं दबी है.
दूसरे हिस्से में, ‘ऐ दिल है मुश्किल’ थोड़ी मुश्किल में फंसती नज़र आती है, जब वो खुद हिंदी फिल्मों के उन्हीं दायरों में बंध कर कर रह जाती है, जिनकी अभी तक वो हँसी उड़ा रही थी. करन की दर्शकों को इमोशनल कर देने की चाह फिल्म पर भारी पड़ने लगी है. सब कुछ अब उतना परफेक्ट नहीं लग रहा, जितना शुरुआत में दिखा था. करन फिल्म में कई सारे पुराने बॉलीवुड गानों को अपने किरदारों को गढ़ने और फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल करते हैं. काश, वो साहिर लुधियानवी साब के ‘वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना बेहतर’ पर अमल करने की हिम्मत दिखा पाते, और फिल्म को वक़्त रहते समेट लेते.
ऐश्वर्या का खूबसूरत लगना कोई ताज्जुब की बात या दिलचस्प वाकया नहीं है, पर ‘ऐ दिल है मुश्किल’ सही मायनों में उनके हुस्न-ओ-जमाल का पूरी तरह और बखूबी इस्तेमाल करती है. रणबीर, इस हिस्से में, अपनी अदाकारी पर भरोसा दिखाने लगे हैं. ऐश्वर्या और अनुष्का के साथ डाइनिंग टेबल वाले दृश्य में, उनकी आँखें आपको अन्दर तक कोंच देती हैं. फ़वाद खान हमेशा की तरह आपकी नज़रें खुद से हटने नहीं देते. ताज्जुब की बात है कि फिल्म में एक और पाकिस्तानी कलाकार इमरान अब्बास भी मेहमान भूमिका में हैं, पर उनको लेकर किसी तरह का कोई हंगामा नहीं हुआ.
खैर, ‘ऐ दिल है मुश्किल’ देखने में अपनी सूरत से कई सारी हालिया फिल्मों जैसी (तमाशा, ये जवानी है दीवानी) भले ही लगती हो, अपनी सीरत में काफी अलग है. इसे एक ‘बॉलीवुड फिल्म’ से आगे जाकर देखने की गलती अगर आप नहीं करेंगे, तो मुमकिन है आपका वक़्त अच्छा कटेगा. हिंदी फिल्मों में खूबसूरत अदाकारों के मुंह से ख़ालिस उर्दू के अलफ़ाज़ सुने अरसा बीत गया था. उम्मीद करता हूँ, उर्दू से किसी को (राजनीतिक पार्टियां, फ़र्ज़ी देशभक्त और व्हाट्स ऐप के शरारती तत्व) कोई तकलीफ़ न हो! [3.5/5]
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