Thursday, 1 October 2015

तलवार : साल की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक ! [4.5/5]

सबूतों, गवाहों और उनके बयानों के मद्देनजर सच को तलाशने की जुगत में अपनी भावनाओं को अलग रख कर एक तटस्थ माध्यम बने रहना बहुत ही मुश्किल है. हम जो देखना चाहते हैं, जो सुनना चाहते हैं और जो मानना चाहते हैं, उसी के इर्द-गिर्द सच्चाई की परिकल्पना तैयार करने में लग जाते हैं. हैरत की बात नहीं, जब एक ही घटना से जुड़े तमाम लोगों का सच एक-दूसरे से एकदम अलग दिखाई और सुनाई देने लगते हैं. मेघना गुलज़ार की ‘तलवार’ हमारी पुलिस, कानून और न्याय व्यवस्था पर एक ऐसा तंज है, जो अपनी बात रखने के लिए सनसनीखेज तरीकों का इस्तेमाल बिलकुल नहीं करती और सच्चाई के करीब रहने की एक भरपूर और कामयाब कोशिश करती है. सच्ची और रोमांचक आपराधिक कहानियों पर आपने बहुत सी फिल्में देखीं होंगी, अच्छी भी, बुरी भी पर ‘तलवार’ जिस ख़ामोशी और ईमानदारी से आपको डराने, सचेत करने और गुस्सा दिलाने में सक्षम साबित होती है, कोई और फिल्म उस ऊंचाई तक पहुँचने का साहस ही नहीं कर पाती.

नोएडा, उत्तर प्रदेश में आरुषि हत्याकांड के घटनाक्रमों से प्रेरित, मेघना गुलज़ार की ‘तलवार’ बिना किसी की तरफदारी किये आपके सामने घटना का सिलसिलेवार ब्यौरा कुछ इस तरह रखती है, जैसे अकीरा कुरोसावा की फिल्म ‘रशोमोन’. जैसे-जैसे घटनाक्रम अपने तौर-तरीके, रंग-रूप और हाव-भाव  बदलती है, हमारा नजरिया, हमारी सोच, किरदारों के प्रति हमारी वफादारी भी उतनी ही तेज़ी से पलटती दिखाई देती है. पेशे से डॉक्टर, टंडन दम्पति [नीरज कबी और कोंकणा सेन] की 14-वर्षीया एकलौती बेटी की लाश उसके ही कमरे में मिली है. शुरूआती जांच में लापरवाह पुलिस का शक घर के नौकर पर जाता है, जिसकी गैरमौजूदगी ही उसके मुजरिम होने का सबूत मान लिया जाता है. पुलिस की हडबडाहट तब बढ़ जाती है जब नौकर की लाश दो दिन बाद उसी घर की छत पर मिलती है. आनन-फानन में पुलिस अपने अधकचरे सबूतों के बल पर डॉक्टर-दम्पति को ही एक प्रेस-कांफ्रेंस के जरिये अपराधी घोषित कर देती है. टीवी में न्यूज़ पैनल पर बैठे दिग्गजों और सामने बैठे हम ड्रामा-पसंद भारतीयों को वैसे भी हमेशा से ऐसा ही सच भाता रहा है जिसमें कुछ सनसनीखेज हो, और फिर इस खुलासे में तो आंतरिक सम्बन्धों, रिश्तों में कालापन और भावुकता से लबरेज मसालों की कोई कमी ही नहीं थी. बहरहाल, जांच का जिम्मा अब CDI [क्रिमिनल डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन] के पास है, जिसकी बागडोर काबिल ऑफिसर कुमार [इरफ़ान खान] संभाल रहे हैं.

‘तलवार’ एक ऐसी धारदार थ्रिलर फिल्म है जो आपके यकीन, आपकी समझ को हर वक़्त टटोलती और तौलती रहती है. हालाँकि पुलिस की बेपरवाह जांच वाले दृश्य मज़ेदार हैं, आपको हंसी भी आती है पर एक डर भी आपके जेहन को जकड़े रहता है कि जहां व्यवस्था इतनी लचर, लापरवाह और पूर्वाग्रहों से ग्रसित है वहाँ इन्साफ की उम्मीद करना कितना मुश्किल है. हत्या जैसे बड़े अपराधों में पुलिस जिस बेरुखी और बेदिली से काम करती दिखाई देती है, और फिर कानून व्यवस्था जिस बेरहमी से उसके नतीजों के साथ खिलवाड़ करती है, आप बेचैन हुए बिना रह नहीं पाते. लगातार बदलते गवाह, सबूतों की अनदेखी, जन-मानस की भावनाओं को संतुष्ट करने की कवायद और समाज की सोच को न्याय का मापदंड बनाते हमारे न्याय-मंदिर, इस फिल्म में बहुत कुछ है जो आपके दिल को काफी वक़्त तक कचोटता रहेगा.

इतने सब के बावजूद, फिल्म आपके मनोरंजन में कोई कमी नहीं छोडती. ब्लैक ह्यूमर के कुछ बहुत ही सधे हुए प्रयोग आपको इस फिल्म में देखने मिलेंगे. घर के एक कमरे से दूसरे कमरे तक आवाज़ पहुँचने-न पहुँचने की जांच परख में एक सहायक अधिकारी का लोकगीत गाना और फिल्म के बेहतरीन अंतिम क्षणों में पहली टीम का दूसरी जांच टीम के हास्यास्पद नतीजों की खिल्ली उड़ाना, फिल्म के बहुत सारे मजेदार दृश्यों में से कुछ ख़ास हैं. फिल्म के एक नाटकीय प्रसंग में, तब्बू का होना फिल्म को देखने की एक और वजह दे जाता है. तब्बू इरफ़ान की बीवी की भूमिका में हैं, जिनके रिश्ते में अब अगर कुछ बचा है तो बस तलाक, हालाँकि कोर्ट में दोनों के पास कोई भी वजह नहीं है. इन दोनों के रिश्ते में गुलज़ार साब की फिल्म ‘इजाज़त’ की झलक और मौजूदगी बड़ी ख़ूबसूरती से पिरोई गयी है.  अभिनय की कहें तो इरफ़ान अपनी भूमिका में पूरी तरह रचे-बसे दिखाई देते हैं. ये उनकी कुछ बेहद जटिल भूमिकाओं में से एक है, जहां उनके किरदार के जज़्बाती उतार-चढ़ाव उन्हें अभिनय के लिए काफी बड़ा कैनवास दे जाते हैं. नीरज कबी और कोंकणा सेन [खास तौर पर ‘अभी रोना भी है’ वाले सीन में] उम्दा हैं. सोहम शाह, गजराज राव, अतुल कुमार अपनी भूमिकाओं में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ते.

अंत में; मेघना गुलज़ार की ‘तलवार’ एक बेहद कसी हुई, सुलझी, समझदार और बहुत बढ़िया फिल्म है. एक ऐसी फिल्म, जो सच को सनसनीखेज नहीं बनाती, फिर भी आप पर अपनी पकड़ कभी ढीली नहीं पड़ने देती. साल की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक, और थ्रिलर फिल्मों में शायद सबसे ऊपर! न देखने की कोई वजह ही नहीं! [4.5/5] 

1 comment:

  1. Your best review of the year so far. Loved it. And also, have shared it on twitter. Are you on twitter?

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