Wednesday, 5 July 2017

Thondimuthalum Driksakshiyum: वो सब, जो बॉलीवुड में 'लापता' है! [4/5]

गिनती की 10-12 फिल्मों और तकरीबन इतनी ही परफॉरमेंसेस को छोड़ दें, तो इंडियन फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा और मेनस्ट्रीम हिस्सा होते हुए भी बॉलीवुड पूरे साल में इतना उत्साहित नहीं कर पाता, जितना क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में बिना शोर मचाये हर महीने कर गुजरती हैं. कहानी कहने की शैली को सिनेमा की भाषा में पिरोने की कला को बारीकी से देखना और समझना हो, तो मलयालम फिल्मों की तरफ रुख कीजिये. मुझे नहीं पता, यहाँ 'स्टार' नाम की प्रजाति पायी जाती है या नहीं, पर कम से कम परदे पर तो सिर्फ असली किरदार और खालिस कलाकार ही दिखते हैं. 

Fahadh Faasil को हम पहले भी Båñglórè Ðäys, 22 Female Kottayam और Iyobinte Pusthakam में बेहद सराह चुके हैं; पिछले साल की Maheshinte Prathikaaram में वो ऐसे सीधे-सादे फोटोग्राफर की भूमिका में थे, जो सरेआम गुंडों से पिट जाता है और अब बदला लेने के लिए तड़प रहा है. यह एक ऐसा किरदार है, जो दस-बारह गुंडों को हवा में उछाल-उछाल कर फेंकने-पटकने और घसीटने की तो छोडिये, एक थोड़े ज्यादा हट्टे-कट्टे आदमी से गुत्थम-गुत्थी में ही हांफने लगता है. Dileesh Pothan की पहली फिल्म थी ये...साल बमुश्किल ही बीता है, और दिलीश अपनी दूसरी फिल्म के साथ हाज़िर हैं, साथ ही हाज़िर हैं फहाद एक बार फिर एक ऐसे किरदार में, जो आस पास का ही है. कभी अपनी ज़मीन नहीं छोड़ता, पर लगातार चौंकता रहता है.  

क़स्बे की सुनसान पगडण्डी पर सरकारी बस हिचकोले खाते चली जा रही है कि अचानक एक शोर से उंघते हुए मुसाफ़िर जग पड़ते हैं. श्रीजा (निमिषा सजायन) और उसके पति (सूरज वेंजारामुदु) का इलज़ाम है कि श्रीजा के ठीक पीछे बैठे प्रसाद (फहाद फ़ासिल) ने उसके गले से सोने की चेन चुरा कर, बचने के लिए निगल ली है. भीड़ से भरी बस अब पास के पुलिस स्टेशन में खड़ी है. मुजरिम अपना जुर्म कबूल नहीं कर रहा, और श्रीजा और उसके पति के पास, घर से भाग के शादी करने के बाद जिंदगी पटरी पर लाने का बस एक ही सहारा है, सोने की वही चेन. तय होता है कि चोर को रात भर वहीँ रखा जाये, खिलाया पिलाया जाये और तब कहीं सुबह जाकर उसके 'नित्य-क्रिया से निपटने' के बाद चेन बरामद की जाये. श्रीजा का पति अब चोर के साथ-साथ पुलिस वालों के लिए भी बिरयानी पैक करा रहा है.

Thondimuthalum Driksakshiyum जिंदगी से पल चुराने में यकीन करने वाली फिल्म है, न कि परदे के लिए उसे अति-नाटकीय बनाकर परोसने वाली. थाने में एक सज़ायाफ्ता रोज पानी भरने के काम के लिए तैनात है. तकरीबन किलोमीटर भर दूर से जब वो दोनों हाथों में भरी हुई बाल्टी लिए, कैमरे के साथ चलता आ रहा है, थकान आपके हाथों और शिकन आपके चेहरे पे भी चढ़ने लगती है. चोर के पीछे भागते भागते श्रीजा के पति का दम फूलने लगा है, प्रसाद में भी अब और भागने की ताक़त नहीं बची. दोनों एक-दूसरे के सामने, फर्लांग भर की दूरी पर बैठे सुस्ता रहे हैं. इतना ही नहीं, फिल्म में भावनाओं के झोंके कुछ इस तरह रह-रह कर बहते हैं कि आप खुद सही-गलत के पाले के बीच झूलते रहते हैं. कभी प्रसाद के तिकड़मी दांव-पेंचों पर हँसते हैं, तो कभी उसके मनमौजी किरदार के साथ हमदर्दी दिखाने से भी गुरेज नहीं करते, और फिर पुलिसिया रवैये से बढ़ती श्रीजा और उसके पति की परेशानियां तो काफी हैं ही दिल कचोटने के लिए.

Thondimuthalum Driksakshiyum की खासियत जितनी उसके किरदारों की सादगी में है, जितनी उसकी कहानी से सरल और सीधे तौर पर लगाव से है, उतनी ही संजीदा और पेचीदा उन किरदारों के ज़ज्बातों के बहाव में है. थिएटर से निकलने के बाद तुरंत बाद मन करे, दोबारा चले चलें, एक बार और सुन लें यही कहानी, एक बार और मिल लें इन्ही किरदारों से; बॉलीवुड ने ऐसी लज्ज़त कितनी बार चखाई है? बहुत कम. मलयालम सिनेमा लगातार अपनी पकड़ बढ़ाता जा रहा है, बॉलीवुड को सीखने के लिए यहाँ बहुत कुछ है. सिनेमा-प्रेमियों को जायके बदलने और बेहतर करने के लिए भी. [4/5]        

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