Friday, 30 December 2016

शीशे सी अदाकारी, पानी सा अदाकार...(The Shape-shifters and The Chameleons, of 2016)

पानी का कोई अपना रंग नहीं होता. रंगों को अपना लेने का हुनर ही उसे सबसे अलग और सबसे ख़ास बना देता है. अदाकारी में भी वही खूबी हो, तो देखने-सुनने का मज़ा ही कुछ और हो जाता है. यही वजह है, जो साधारण सी फिल्म ‘फैन’ में भी आपका रोमांच बनाये रखती है.

एक लंबे अरसे से शाहरुख़ सारी मेहनत-मशक्कत अपने स्टारडम की चकाचौंध से अपनी और कुछ अपने ही ख़ास लोगों की औसत दर्जे की फिल्मों को बॉक्स-ऑफिस पर सफल करने में जाया कर रहे थे, ‘फैन’ शाहरुख़ के उस बेजोड़ ललक, लगन और अभिनय के प्रति लगाव को हवा देती है, बॉलीवुड की बादशाहत हासिल करने में जिसने एक बड़ी भूमिका निभाई थी. शाहरुख़ बेझिझक इस मौके का पूरा फायदा उठाते हैं.

अलीगढ़’ में मनोज बाजपेयी को ही ले लीजिये. मनोज का अभिनय बोलने से ज्यादा कहने में यकीन रखता है. प्रोफेसर सिरास को वो जिस संजीदगी से और नजाकत से दर्शकों तक पहुंचाते हैं, एक वक़्त आता है जब आप दोनों को [मनोज और प्रोफेसर सिरास] अलग-अलग करके देखना भूल ही जाते हैं. मनोज कमोबेश एक ऐसी छाप छोड़ जाते हैं जो आपको बार-बार अभिनय में उनके कद की याद दिलाता रहेगा.

ऐसा ही कुछ तिलिस्म स्वरा भास्कर भी पेश करती हैं ‘निल बट्टे सन्नाटा’ में! एक पल को भी उन्हें उनके किरदार चन्दा से अलग देखना मयस्सर नहीं होता. बेटी की हताशा में बेबस, गरीबी से जूझती, सपनों को जिंदा रखने में दौड़ती-भागती एक अकेली माँ का सारा खालीपन उनकी आँखों में हमेशा तैरता रहता है, ऐसा शायद ही कभी होता है कि वो पूरी तरह टूट जाएँ स्क्रीन पर, फिर भी आपकी आँखों को भिगोने में वो हर बार कामयाब होती हैं.



उड़ता पंजाब’ में दिलजीत वाकई दिल जीत लेते हैं. एक ख़ास किस्म की सादगी तो है ही उनमें, अभिनय में भी कहीं कोई कमी नहीं दिखती. देखना होगा कि बॉलीवुड उन्हें आगे किस तरह ट्रीट करता है. हालाँकि फिल्म की सबसे मजबूत कड़ी आलिया हैं. उनकी बिहारी बोली में थोड़ी घालमेल जरूरी दिखती है, पर जिस दर्द को वो बिना बोले फिल्म में जीते नज़र आती हैं, वो आलिया को आज के दौर के नामचीन अभिनेताओं की श्रेणी में ला खड़ा करने के लिए काफी है. बच्चन साब को अदाकारी में किसी सनद की जरूरत नहीं है, पर ‘पिंक’ में उनका अभिनय ख़ास कर उन मौकों पर, जब वो बोलने की जेहमत भी नहीं उठा रहे होते, बेहतरी की हर हद से ऊपर है.

अपने स्टारडम को हाशिये पर रखकर किरदार तक ही सीमित रहने का हुनर अगर बॉलीवुड में किसी को सबसे बेहतर आता है, तो वो हैं आमिर खान. बात सिर्फ वजन घटा-बढ़ा कर प्रयोग करने की नहीं है, फिल्म के तमाम जरूरी हिस्सों और दृश्यों में केंद्र-बिंदु बने रहने का लोभ-संवरण कर पाना, हर किसी के बस की बात नहीं. और ‘दंगल’ उनकी इस खासियत की ताज़ा मिसाल है. ‘वेटिंग’ में कल्कि का अभिनय साल के सबसे ‘ईमानदार’ कोशिशों में से एक कहा जा सकता है. उनके किरदार की झुंझलाहट, उसकी बेबाकी, उसका टूटना-उसका संभलना सब कुछ इतना सधा और संयमित है, कि नाटकीयता का कहीं नाम-ओ-निशान भी नहीं दिखता. ‘नीरजा’ में सोनम कपूर इसी बदलाव की तरफ बढ़ने का हौसला दिखातीं हैं. फिल्म में उनका सोनम कपूर न लगना ही काफी हद तक आपको उनके हक में कर जाता है.

साल 2016 के इन 10 बड़े 'गिरगिटिया' अदाकारों को शुक्रिया... 

#फातिमा सना शेख़, दंगल में
#शाहरुख खान, फैन में
#स्वरा भास्कर, निल बट्टे सन्नाटा में
#दिलजीत दोसांझ, उड़ता पंजाब में
#कल्कि कोचलिन, वेटिंग में
#अमिताभ बच्चन, पिंक में
#सोनम कपूर, नीरजा में
#आमिर खान, दंगल में
#आलिया भट्ट, उड़ता पंजाब में
#मनोज बाजपेयी, अलीगढ़ में 


1 comment:

  1. bahot badhiya bhai .. dil jeet article .. kam shabdo me sateek baat.

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