21 साल, 1 महीना और 20
दिन लग गये आदित्य चोपड़ा साब को, दर्शकों और मुझ जैसे पागल प्रशंसकों के
दिल-ओ-दिमाग में ये शक़ पैदा करने में कि ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’
उन्होंने बनाई थी या उनसे बस बन गयी थी. एक ‘खराब, बेहद खराब’ फिल्म से किसी को सूली
पे चढ़ा देना ग़लत है, पर कसौटी पर कसे जाने की बारी आती है तो रहम की उम्मीद कम से
कम इसलिये तो मत ही कीजिये क्यूँकि इंडस्ट्री में आपकी साख काफ़ी मज़बूत है. ‘बेफिक्रे’
हालाँकि एक रोमांटिक-कॉमेडी होने के दावे तो बड़े ज़ोर-शोर से करती है, मगर इसमें
रोमांस और कॉमेडी का तड़का बस नाम भर का ही है. असलियत में ‘बेफिक्रे’ अपने-आप
में ही हैरान-परेशान एक ऐसी फिल्म है, जो जाना कहीं और चाहती है, पर पहुँचती कहीं
और.
फिल्म पेरिस में रची-बसी
है, पर फ्रांस के नाम पर ‘फ्रेंच किस’ और वहाँ के लोगों में ‘सेक्स’ के प्रति खुलापन
का भरपूर शोषण करती है, और कई मायनों में उसका माखौल भी उड़ाती है. माँ-बाप इंडियन
हैं, पर शाईरा (वाणी कपूर) फ्रेंच. कैलेंडर के पन्नों की तरह बॉयफ्रेंड बदलती
है. धरम (रनवीर सिंह) दिल्ली से आया है, पेरिस के एक क्लब में स्टैंड-अप कॉमेडियन
बनने. मुलाक़ात के चंद ‘रातों’ बाद ही, दोनों तय कर लेते हैं कि कभी एक-दूसरे को ‘आय
लव यू’ नहीं बोलेंगे. और फिर वही हिंदी सिनेमा की उठा-पटक, जो अंत तक
पहुँचते-पहुँचते दोनों को ‘आय लव यू’ बोलना सिखा ही देती है. इस पूरे वक़्त में वो
सब बातें होती हैं, जो परदे पर आप पहले भी हज़ारों बार देख और झेल चुके हैं. लिव-इन
के बाद ब्रेक-अप, ब्रेक-अप के बाद पैच-अप इस शर्त के साथ कि अब हम सिर्फ दोस्त
रहेंगे, फिर एक नए किरदार का आना, माँ के पराठों के साथ ‘असली प्यार’ की घुट्टी और अंत में, साजिद
खान की फिल्मों की तरह चर्च में शादी के मौके पर सारे किरदारों का पागलों की
तरह एक-दूसरे पर टूट पड़ना.
‘बेफिक्रे’ का हर
एक पल फिल्ममेकर के तौर पर आदित्य चोपड़ा के दिमागी दिवालियेपन से आपको
रूबरू कराता है. कुछ नया पेश करने की भागादौड़ी में कभी तो चोपड़ा साब अपनी खुद की
ही मास्टरपीस ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ के दृश्यों के साथ छेड़छाड़
करते दिखाई देते हैं, तो कभी फिल्म के तयशुदा मुकाम तक पहुँचने के लिए अपने
समकालीन फिल्मकारों के हथकंडे अपनाने से भी परहेज नहीं करते. एक वक़्त था, जब परदे
पे कलाकार ‘किस’ करने के लिये एक दूसरे की ओर बढ़ते थे तो फूलों वाली ‘स्लाइड’ आगे
आ जाती थी, ‘बेफिक्रे’ में बेवजह के गाने उस ‘स्लाइड’ की जगह ले लेते हैं.
फिल्म में रनवीर
एक स्टैंड-अप कॉमेडियन बने हैं, मगर जिस तरह का थकाऊ ‘कॉमिक सेट’ वो परदे पर पेश
कर रहे होते हैं, मुझे ताज्जुब होता है कि क्या फिल्म से जुड़े किसी भी भलेमानस ने
यूट्यूब पर ही सही, डैनियल फर्नांडिस, सौरभ पन्त, केनी सेबेस्टियन जैसों को
कभी देखा या सुना नहीं होगा? अपने भटके हुए किरदारों के साथ, फिल्म कई बार ‘घर
के ना घाट के’ जैसे मुहावरों की भेंट चढ़ जाती है. शाईरा नए ज़माने की लड़की है.
40 से ज्यादा बॉयफ्रेंड्स बना चुकी है. ‘लिव-इन’ में जाने से पहले अपने माँ-बाप को
‘बताती’ है, पूछती नहीं, पर जब सच्चे प्यार की बात हो तो माँ के पराठों की ओर
भागती है. धरम खुद तो अपनी रातें रंगीन करने में कोई झिझक नहीं दिखाता, पर जब
सामने बैठी लड़की कहती है, “मैं अपने बॉयफ्रेंड को जलाने के लिए तुम्हारे रात
बिताना चाहती हूँ’, तो उसकी आँखें चौड़ी होने लगती हैं. पेरिस में जा के ‘समलैंगिकता’
का मज़ाक उड़ाने वाले नौजवान आजकल के कैसे हो सकते हैं, खास कर वो जो ‘सेक्स’ को ही
अपनी आज़ादी का पैमाना बना चुके हों?
‘बेफिक्रे’ में ऐसे
मौके बार-बार आते हैं, जब मेरा परदे से मुंह मोड़ लेने को जी करने लगता है. मैं सर
झुका कर अँधेरे में इधर-उधर देखने लगता हूँ, पर ऐसा उन बेधड़क ‘किस सीन्स’
के वजह से नहीं होता, बल्कि परदे पर वाहियात के दृश्यों, नीरस डायलॉग्स और ‘नेचुरल
एक्टिंग’ के नाम पर चल रही बेवकूफियों से ऊब कर होता है. कभी-कभी रनवीर के
पीले दांतों से भी. अच्छे डांस मूव्स और खूबसूरत सिनेमेटोग्राफी के अलावा, अनय
का किरदार निभा रहे अभिनेता का काम ही थोड़ा बहुत सुकून भरा है. वरना तो, ‘बेफिक्रे’
आदित्य चोपड़ा की ‘हमशकल्स’ या ‘वेलकम’ कहे जाने लायक ही है. मुझे डर
है, कहीं मेरी इस बात से साजिद खान या अनीस बज्मी बुरा न मान जाएं! [1/5]
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