Thursday 8 February 2018

पैडमैन: सामाजिक झिझक 'सोखने' वाली एक सुपर-हीरो फिल्म! [3.5/5]

तमिलनाडु के अरुणाचलम मुरुगनान्थम भारत के उन चंद 'सुपरहीरोज' में से हैं, जिन्होंने सस्ते सेनेटरी पैड बनाने और उन्हें गाँव-गाँव में महिलाओं तक पहुंचाने के अपने लगातार प्रयासों के जरिये, टेड-टॉक्स जैसे वर्चुअल प्लेटफार्म से लेकर यूनाइटेड नेशन्स जैसे विश्वस्तरीय मंच पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है. उनकी सादगी, उनके बोलने के अंदाज़, उनके खुशमिजाज़ व्यक्तित्व और समाज में बदलाव लाने की उनकी ललक, उनकी जिद, उनके संघर्षों को, आर. बाल्की की फिल्म 'पैडमैन' एक फ़िल्मी जामा पहनाकर ही सही, परदे पर बड़ी कामयाबी से सामने रखती है. ये अरुणाचलम मुरुगनान्थम की ईमानदार कहानी और उनकी मजेदार शख्सियत ही है, जो थोड़ी-बहुत कमियों के बावजूद, फिल्म और फिल्म के साथ-साथ परदे पर मुरुगनान्थम का किरदार निभा रहे अक्षय कुमार को बहुत सारी इज्ज़त उधार में दे देती है. और जिसके वो हक़दार हैं भी, आखिर हिंदी फिल्मों में कितनी बार आपने एक मुख्यधारा के बड़े नायक को कुछ मतलब की बात करते सुना है, जो उसके सिनेमाई अवतार से अलग हो, जो सामाजिक ढ़ांचे में 'अशुद्ध, अपवित्र और अछूत' माना जाता रहा हो. 

'पैडमैन' महिलाओं की जिंदगी में हर महीने आने वाले उन 5 दिनों के बारे में बात करती है, जिसे अक्सर हम घरों में देख कर भी अनदेखा कर देते हैं. महीने भर की शॉपिंग-लिस्ट तैयार करते हुए कितनी बार आपने सेनेटरी पैड्स का जिक्र किया होगा? वो काली थैली या अखबार में लपेटे हुए पैकेट्स कैसे सबकी नज़रों से नज़र चुराते हुए किसी आलमारी में ऐसे दुबक जाते हैं, जैसे सामने खुल जाएँ तो क्या क़यामत आ जाये? मध्यप्रदेश का लक्ष्मीकांत चौहान (अक्षय कुमार) अपनी पत्नी गायत्री (राधिका आप्टे) को गन्दा कपड़ा इस्तेमाल करते देखता है, तो चौंक जाता है, "मैं तो अपनी साइकिल न साफ़ करूं इससे", और पत्नी 'ये हम औरतें की दिक्कत है, आप इसमें मत पड़िये' बोल के 5 दिन के लिए बालकनी में बिस्तर लगा लेती है. गली में क्रिकेट खेल रहे लौंडे भी खूब जानते हैं, "गायत्री भाभी का (5 दिन का) टेस्ट मैच चल रहा है". 

ये भारत के उस हिस्से की बात है, जहां पहली बार 'महीना' शुरू होने पर लड़की से औरत बनने का उत्सव मनाया जाता है. रस्में होती हैं, पूजा होती है, भोज होता है, पर सोना लड़की को बरामदे में ही पड़ता है. लक्ष्मी की समझ से परे है कि थोड़ी सी रुई और जरा से कपड़े से बनी इस हलकी सी चीज का दाम 55 रूपये जितना महंगा कैसे हो सकता है? और इसी गुत्थी को सुलझा कर सस्ते सेनेटरी पैड्स बनाने की जुगत में लक्ष्मी बार-बार नाकामयाबी, डांट-फटकार, सामाजिक बहिष्कार और पारिवारिक उथल-पुथल से जूझता रहता है. तब तक, जब तक परी (सोनम कपूर) के रूप में उसे उसकी पहली ग्राहक और एक मददगार साथी नहीं मिल जाता है. 

'पैडमैन' अपने पहले हिस्से में जरूर कई बार खुद को दोहराने में फँसी रहती है. लक्ष्मी का सेनेटरी पैड को लेकर उत्साह और उसे मुकम्मल तरीके से बना पाने की जिद खिंची-खिंची सी लगने लगती है. हालाँकि इस हिस्से में अक्षय से कहीं ज्यादा आपकी नज़रें राधिका आप्टे पर टिकी रहती हैं, जो एक बहुत ही घरेलू, सामान्य सी दिखने वाली और सामजिक बन्धनों के आगे बड़ी आसानी से हार मान कर बैठ जाने वाली औरत और पत्नी के किरदार में जान फूँक देती हैं. उनके लहजे, उनकी झिझक, उनके आवेश, सब में एक तरह की ईमानदारी दिखती है, जिससे आपको जुड़े रहने में कभी कोई तकलीफ महसूस नहीं होती. अक्षय जरूर शुरू शुरू में आपको 'टॉयलेट-एक प्रेम कथा' के जाल में फंसते हुए दिखाई देते हैं, पर फिल्म के दूसरे भाग में वो भी बड़ी ऊर्जा से अपने आप को संभाल लेते हैं. एक्सिबिशन में अपनी मिनी-मशीन को समझाने वाले दृश्य और यूनाइटेड नेशन्स के मंच पर अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी की स्पीच के साथ, अक्षय अपनी पिछली कुछ फिल्मों की तुलना में बेहतर अभिनय करते दिखाई देते हैं. ये शायद इस वजह से भी हो, कि 'पैडमैन' कहीं भी उनके 'देशभक्त' होने और परदे पे दिखने-दिखाने के पूर्वनियोजित एजेंडे पर चलने से बचती है. 

'पैडमैन' अपने विषय की वजह से पहले फ्रेम से ही एक जरूरी फिल्म का एहसास दिलाने लगती है. बाल्की 'माहवारी' के मुद्दे पर पहुँचने में तनिक देर नहीं लगाते, न ही कभी झिझकते हैं. फिल्म अपने कुछ हिस्सों में डॉक्यूमेंटरी जैसी दिखाई देने लगती है, तो वहीँ सोनम के किरदार के साथ लक्ष्मी का अधूरा प्रेम-प्रसंग जैसे हिंदी फिल्म होने की सिर्फ कोई शर्त पूरी करने के लिए रखा गया हो, लगता है. दो-एक गानों, अमिताभ बच्चन के एक लम्बे भाषण और फिल्म के मुख्य किरदार का नाम बदल कर अरुणाचलम मुरुगनान्थम से उनकी उपलब्धियों, उनके व्यक्तित्व का एक छोटा हिस्सा चुरा लेने के एक बड़े अपराध को नज़रंदाज़ कर दिया जाये, तो 'पैडमैन' एक मनोरंजक फिल्म होने के साथ साथ एक बेहद जरूरी फिल्म भी है. परिवार के साथ बैठ के देखेंगे, तो सेनेटरी पैड को लेकर आपस की झिझक तोड़ेगी भी, सोखेगी भी. [3.5/5]     

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