ये दौर है फेसबुक, व्हाट्स एप्प, टिंडर,
ट्वीटर का, और इन जैसे तमाम एप्प्स को धड़ल्ले से इस्तेमाल करने वाली नई पीढ़ी का,
जो अपने आप को लगातार बदलते रहने, अपडेट रखने में कतई कोताही नहीं बरतती. फिर
प्यार क्यूँ अपने पुराने ढर्रे पर ही घिसटता रहे? फिर
बॉलीवुड की प्रेम-कहानियों को भी क्यूँ कर ठोक-पीट उनके पुराने दड़बे में ही कैद
रखा जाये? तो, अब प्यार का नया संस्करण बाज़ार में आ गया है. प्यार
2.0 यानी ‘फ़्यार’- सिमरनें अब राज से ‘शादी से पहले वो नहीं’ का वादा नहीं लेतीं, राज
‘हिन्दुस्तानी लड़की की इज्ज़त क्या होती है’ जानने का दम नहीं
भरता. जबरदस्ती शादी के लिए माँ-बाप, परिवार की दुहाई देने
पर लड़की भावुक होकर चुपचाप मेहंदी की डिज़ाइन पसंद करने नहीं बैठ जाती. मंडप तक
जाने का फैसला अब सिर्फ उसका है, चाहे ऐसा करते उसकी अपने साथ ही, अपने अन्दर ही
कितनी ज़ज्बाती लड़ाई क्यूँ न चल रही हो? समाज का रवैया भले
नहीं बदल रहा हो, किरदार चुपके चुपके ही सही, बदल रहे हैं. उनकी कहानियाँ बदल रही हैं. और ‘मनमर्ज़ियाँ’ के साथ अनुराग
कश्यप भी. ‘काले’ सैयां के इश्क़ का रंग अब ‘ग्रे’ हो गया है. बदलाव के नाम पर इतना
बहुत है, अब पूरा सफ़ेद होने की उम्मीद मत लगा बैठियेगा. ज्यादा
हो जायेगा.
‘मनमर्ज़ियाँ’ अपने
आप में बहुत ढीठ लफ्ज़ है. गलत-सही सोचने और समझ आने से बहुत पहले मन जो कहे, कर
जाना. रूमी (तापसी पन्नू) का किरदार इस लफ्ज़ के बिलकुल पास बैठता है. एकदम घेर के.
ठीक सट के. ‘एक बार बोल दिया तो पीछे नहीं हटती’ के ग़रूर में
अपने सच्चे प्यार विक्की (विक्की कौशल) को अल्टीमेटम दे आई है. ‘कल अगर घर पे हाथ
मांगने नहीं आया, तो अगले दिन घर वाले जहां कहेंगे, शादी कर
लूंगी’. तैश में सोचती भी नहीं, पर ऐसा नहीं कि समझती भी
नहीं. विक्की जिम्मेदारियों के नाम पर टें बोल जाता है. बनना तो ‘यो यो हनी सिंह’ है, पर अभी तक दूसरों के गानों का ही रीमिक्स बजाता
रहता है. रूमी के कहने पर साथ भाग तो आया है, पर कोई ठोस
प्लान नहीं. पहले भी कर चुका है, रूमी एबॉर्शन के बाद रिक्शे
पर बैठ कर अकेले घर गयी थी. रॉबी (अभिषेक बच्चन) को कोई जल्दी नहीं. हनीमून के
वक़्त भी, शादी के बाद भी. ‘रामजी’ टाइप का आदमी है. न कुछ
पूछता है, न ही रूमी पर मर्दाना हक़ जताने की कोई तलब है
उसको. तेज़ आवाज में बोलने को भी, उसको चार पैग लगते हैं. बैंकर है, तो जानता है कि इस इन्वेस्टमेंट में रीटर्न की कोई गारंटी नहीं.
‘मनमर्ज़ियाँ’ फिल्म की लेखिका कनिका
ढिल्लों के अपने अनुभवों का साझा है, इसलिए गिनती के दो-चार दृश्यों
को छोड़ कर, फिल्म की घटनाओं से जुड़ाव में किसी तरह की कोई फांस आड़े नहीं आती. रूमी
का अक्खड़पन, विक्की का लापरवाह रवैया और रॉबी के किरदार में सुन्न
कर देने वाला ठहराव; ’मनमर्ज़ियाँ’ अपने बनावट में ‘वो सात
दिन’, ‘धड़कन’, ‘हम दिल दे चुके सनम’ और ‘तनु वेड्स मनु’ जैसी तकरीबन आधी दर्जन हिंदी फिल्मों की याद जरूर दिला सकता है, पर फिल्म
देखने के बाद आप जो नहीं भूलते, उनमें इन किरदारों को लिखने में कनिका की गहरी समझ
शामिल है. दृश्यों में नाटकीयता कलम से
कहीं ज्यादा, किरदारों के अपने मिजाज़ से निकलती और बनती है.
अमित त्रिवेदी का संगीत और शैलीजी के गीत फिल्म पर हमेशा और हर वक़्त छाये रहते
हैं. कश्यप की दाद देनी होगी, जिस बाकमाल तरीके से म्यूजिक
को वो अपने दृश्यों में, और दृश्यों को अपने म्यूजिक में पिरोते हैं.
‘मनमर्ज़ियाँ’ शर्तिया तौर पर अपने तीन
ख़ास कलाकारों में पूरी की पूरी बंट जाती है. तापसी का रूमी होना ‘मनमर्ज़ियाँ’ के
लिए किसी तोहफे से कम नहीं. परदे पर उसका छिटकना, बिगड़ना, गुस्से में तपना, भड़कना
और टूटना; रूमी के अन्दर से तापसी एक पल को बाहर नहीं आती. विक्की को उसकी
गैर-जिम्मेदाराना रवैये के लिए कोसते और डांटते हुए परदे पर जिस तरह वो फटती हैं, आवाक् कर देती हैं. फिल्म के आखिरी पलों में कैमरे की तरफ दौड़ते हुए उनके
चेहरे की मुस्कुराती चमक में जैसे एक पल को पूरी फिल्म उनकी हो के रह जाती है.
विक्की फिल्म दर फिल्म चौंका रहे हैं. ‘संजू’ के शराबी दृश्य
के बाद, इस फिल्म में भी उनके हिस्से एक ऐसा ही दृश्य आया है. इस बार सिर्फ उनका
चेहरा नहीं बोल रहा, पूरे का पूरा बॉडी लैंग्वेज प्रभावित करता है. गानों के
डांस-स्टेप्स और लिप-सिंक में उनकी वो क़ाबलियत खुल कर सामने आती है, जो उन्हें अच्छे एक्टर से ‘स्टार मैटेरियल’ बनने की तरफ बढ़ने में मदद
करेगी. विक्की में कॉमिक की संभावनायें भी और प्रबल हो रही हैं.
अभिषेक बच्चन दो साल बाद परदे पर हैं.
एक ऐसे किरदार में, जिसे आप कतई मजेदार नहीं कह पायेंगे. जिसके
साथ होते हुए शायद आप खिलखिलाएं नहीं, झूमें-गायें नहीं, पर ऐसा नहीं करते हुए भी परदे पर उसकी मौजूदगी बहुत ठोस है. उसकी शख्सीयत
में इतनी परतें हैं, कि खोलते-खोलते फिल्म कम पड़ जाती है. उसकी
नेकनीयती, उसकी संजीदगी कहीं भी उसे लाचार नहीं बनाती, बल्कि हर वक़्त पहाड़ की तरह
अडिग और बर्फ की तरह ठंडा रखती है, और शायद यहीं, इसी पल में अभिषेक अपने सबसे
मुश्किल किरदार में सबसे आसानी से ढल रहे होते हैं, पिघल रहे होते हैं.
आखिर में; ‘मनमर्ज़ियाँ’
लव और अरेंज्ड मैरिज के बीच हिचकोले खाती इस नई ‘ज़िम्मेदार, समझदार और तैयार’ पीढ़ी
की उनकी अपनी एक ‘मेच्योर’ लव-स्टोरी है, जहाँ किरदार सपनों में जीने से कहीं ज्यादा,
अपने आप को जानते-पहचानते हैं. अपनी खामियों का जश्न मनाते हैं. अपनी चाहतों के
लिए लड़ते-भिड़ते हैं, और ‘डिस्कशन’ को अच्छा मानते हैं. प्यार
का लेटेस्ट वाला वर्जन है, आप भी अपडेट कीजिये. [3.5/5]
Thanks Gaurav for your regular updates....Always following you brother !!!
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