Friday, 30 September 2016

एम एस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी: औसत दर्जे की ‘धोनी-फ्रेंडली’ फिल्म! [2.5/5]

“धोनी रांची का रहने वाला है. स्कूल के दिनों में तो उसे क्रिकेट से कुछ लेना-देना भी नहीं था. फुटबॉल खेलता था, गोलकीपर अच्छा था. वो तो स्कूल के कोच सर ने क्रिकेट में खींच लिया. बाद में, रेलवे में टिकट कलेक्टर लग गया था, पर क्रिकेट का जूनून उतरा नहीं सर से. फिर जो एक बार इंडिया टीम में सेलेक्ट हुआ, सबकी छुट्टी कर दी. क्या सीनियर खिलाड़ी, क्या रिकॉर्ड-होल्डर्स! आज भी रांची आता है तो बाइक पर दोस्तों के साथ ‘कल्लू ढाबा’ की ओर निकल जाता है. बाइक का बड़ा शौक है भाई को. हर तरह की, महंगी से महंगी, सब मिल जायेंगी उसके गैराज़ में खड़ी. ज्यादा तो कुछ पता नहीं, पर साक्षी से पहले उसकी एक और भी गर्लफ्रेंड थी.” मुझे यकीन है, भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े सितारों में से एक महेंद्र सिंह धोनी के बारे में इतना सब तो उनके चाहने वालों की जबान की नोक पर रखा होगा. पर यहाँ सवाल कुछ और है, क्या महेंद्र सिंह धोनी पर बनने वाली फिल्म में भी आप यही सब देखना पसंद करेंगे? कामयाबी के पीछे संघर्ष ढूँढने की ललक हम सबमें रहती है, पर अपने चहेतों को ‘हीरो’ मान बैठने की जल्दबाजी में कहीं हम उस वजनदार नाम के पीछे की छोटी-छोटी ही सही तमाम गलतियों, खामियों को नज़रअंदाज़ करने की भूल तो नहीं कर बैठते? एक सच्ची और ईमानदार जीवनी इन सभी संदेहों और शंकाओं से लगातार परे रहने की कोशिश करती है.   

भारत में क्रिकेट और सिनेमा को ‘धर्म से परे एक और धर्म’ की नज़र से देखा जाता है. और अगर ऐसा है, तो नीरज पाण्डेय एकलौते ऐसे फ़िल्मकार के तौर पर उभर के आते हैं, जो अपनी इस नई फिल्म में इन दोनों धर्मों को बराबर तवज्जो देते हैं. नीरज की ‘एम एस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी’ एक सधी हुई ‘सेफ’ फिल्म है, जिसे हम एक ऐसे फैन की तरफ से अपने ‘हीरो’ को श्रद्धांजलि मान सकते हैं, जो अपने ‘हीरो’ को कहीं भी डगमगाने, लडखडाने या हिचकिचाने तक की छूट नहीं देता. हालाँकि फिल्म के पहले भाग में उनका पूरा ध्यान धोनी [सुशांत सिंह राजपूत] के अति-मध्यमवर्गीय परिवेश से उठने और उस माहौल की संवेदनाओं से उपजने वाले डर, झिझक और संयम से जूझने पर ही टिका रहता है, पर निश्चित तौर पर यही वो हिस्सा है जो साधारण, सहज और सरल होते हुए भी आपको बांधे रखने में कामयाबी हासिल करता है. पिता [अनुपम खेर] रांची के स्थानीय स्टेडियम में पंप चलाकर पानी से पिच गीली कर रहे हैं. बेटे की चाहत भी जानते हैं और पढ़ाई की जरूरत भी. हमेशा साथ खड़े रहने वाले दोस्तों की जमात को तो बस ‘माही मार रहा है’ सुनने की ललक है.

नीरज पाण्डेय अपनी फिल्मों में चौंकाने के लिए जाने जाते हैं. कभी कहानी को कोई सनसनीखेज मोड़ देकर, तो कभी अभिनेताओं के साथ किसी नए तरह के प्रयोग के साथ. ‘एम एस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी’ इस तरह की किसी लाग-लपेट में उलझने की कोशिश नहीं करती, बल्कि एक ही ढर्रे पर हलके-फुल्के उतार-चढ़ाव के साथ चलती रहती है. कुछेक बहुत रोचक और रोमांचक पलों में, युवराज सिंह [हैरी टंगरी] के साथ धोनी का पहला मैच, जहां दोनों एक-दूसरे के आमने सामने होते हैं, फिल्म के पहले भाग में सबसे उत्साहित करने वाला दृश्य बन पड़ता है. फिल्म के दूसरे भाग में, नीरज, धोनी के व्यक्तिगत जीवन और एक से अधिक प्रेम-प्रसंगों में झाँकने के साथ ही कहानी के ‘हीरो’ को फिल्म का ‘हीरो’ बना देने की गलती कर बैठते हैं. एक के बाद एक गानों की लड़ी लग जाती है और फिर अंत तक आते आते आप जिस धोनी को जानने-समझने की उम्मीद ले कर थिएटर आये थे, उसी धोनी की कामयाबी की चकाचौंध में गुम होकर रह जाते हैं.  

शुरुआत के दो-चार खराब ‘ग्राफ़िकली ट्रीटेड’ दृश्यों को छोड़ दें तो सुशांत सिंह राजपूत पूरी तरह से धोनी के किरदार में रचे-बसे नज़र आते हैं, खासकर परदे पर धोनी के चिर-परिचित शॉट्स को जिंदा रखने में. उन पर कभी धोनी जैसा दिखने का दबाव नहीं रहा, शायद इसलिए भी उनका आत्मविश्वास फिल्म में पूरी तरह कायम दिखता है. अनुपम खेर तो जैसे नीरज पाण्डेय की फिल्मों में एक ख़ास तरह की अभिनय-शैली अपना लेने भर तक ही सीमित दिखने लगे हैं. भूमिका चावला कहीं से भी सहज नहीं दिखतीं. हैरी टंगरी युवराज सिंह को बखूबी परदे पर उतार लाते हैं. धोनी के कोच की भूमिका में राजेश शर्मा शानदार अभिनय करते हैं. तमाम एतेहासिक मैचों में विज़ुअल ग्राफ़िक्स की मदद से सुशांत को धोनी बनाने में कहीं भी चूक नहीं होती.

आखिर में, नीरज पाण्डेय की ‘एम एस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी’ एक सामान्य फिल्म है जो मनोरंजक होने की शर्त पूरी करते-करते भूल जाती है कि किरदारों के गढ़ने में हथौड़ों की चोट भी उतनी ही जरूरी होती है, जितनी सहूलियत और नजाकत उसे सजाने-संवारने में. आखिर एक सफ़ेद कैनवास को आप कितने देर निहारते रहेंगे? कुछ स्याह भी हो, कुछ सीलन भी हो. 3 घंटे से भी थोड़ी लम्बी ये फ़िल्मी पारी, धोनी की क्रिकेट में सबसे यादगार पारियों के करीब भी नहीं पहुँचती, न रोमांच में, न ही इमोशन्स में! [2.5/5]                     

No comments:

Post a Comment